थांदला। जीवन में जब भी संकट के बादल छा जाते है मन आकुल व्याकुल हो जाता है तब गुरु ही हमें सही मार्ग दिखाते है। नगर के एक मात्र बैकुंठ धाम गुरुद्वारा के नाम से प्रसिद्ध श्री सरस्वती नंदनस्वामी भजन आश्रम में आषाढ़ शुक्ल गुरु पूर्णिमा महोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। डूंगरप्रांत के विभिन्न स्थानों के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के अनेक गुरु भक्तों ने प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में श्री सरस्वतीनंदन स्वामीजी की प्रतिमा का महाभिषेक किया तत्पश्चात चरणपादुका पूजन व मंगल आरती सम्पन्न हुई अंत में सभी गुरुभक्तों के लिए महाप्रसादी का आयोजन हुआ।
संत सम्मान कर लिया आशीर्वाद
धर्म की गंगा बहाने व जगत में सही राह बताने में आध्यात्मिक धर्म गुरु का विशेष स्थान रहता है इस हेतु नगर के भाजपा प्रदेश मंत्री संगीता सोनी…
[दोपहर 2:04 बजे, 11/7/2025] हरिश राठोड: चातुर्मास कल्प प्रारंभ होने से पूर्व ही ऐतिहासिक धर्मचक्र की आराधना शुरू - 80 से ज्यादा तपस्वी कर रहे आराधना
थांदला। धर्म नगरी थांदला में आध्यात्मिकता का माहौल सदा बना रहता है। जिन शासन गौरव जैनाचार्य परम पूज्य गुरुदेव उमेशमुनिजी महाराज साहेब की दिव्य कृपा व उनके प्रथम शिष्य आगम विशारद प्रवर्तक देव श्री जिनेन्द्रमुनिजी महाराज साहेब की आज्ञानुवर्ती महासती परम विदुषी बाल ब्रम्हचारिणी पूज्याश्री निखिलशीलाजी म.सा., पूज्याश्री दिव्यशीलाजी माताजी म.सा., पूज्याश्री प्रियशीलाजी म.सा. एवं पूज्याश्री दीप्तिजी म.सा. के चातुर्मास कल्प पूर्व से विराजने का लाभ थांदला संघ को मिला उनकी प्रेरणा व श्रीसंघ अध्यक्ष भरत भंसाली की ऊर्जावान अध्यक्षता में जहाँ पिछले वर्ष रिकार्ड 72 वर्षीतप व 68 सिद्धितप हुए वही इस बार सामुहिक रूप से 80 से ज्यादा तपस्वी धर्म चक्र की आराधना शुरू कर चुके है। जानकारी देते हुए संघ सचिव प्रदीप गादिया, ललित जैन नवयुवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा, संयोजक हितेश शाहजी व प्रवक्ता पवन नाहर ने बताया की श्रीसंघ परिवार के आर्थिक सहयोग से संघ में एक बार फिर तपस्या का माहौल निर्मित हो गया है। सभी तपस्वियों के पारणें व बियासने की व्यवस्था समुहिक रूप से श्रीसंघ द्वारा ही स्थानीय महावीर भवन पर की जा रही है। इसी के साथ श्रीसंघ द्वारा निवि, आयम्बिल खाता भी चलाया जा रहा है जिसमें श्रीमती लता सोनी व श्रीमती अनुपमा श्रीश्रीमाल द्वारा आराधकों की व्यवस्था की जा रही है। आषाढ़ पूर्णिमा से चातुर्मास कल्प शुरू हो जाता है ऐसे में जैन संत-सतियों का विहार बंद हो जाता है व उन्हें एक ही स्थान पर चार माह तक रुकना होता है जिससे धर्म जागृति आती है यही कारण है कि यहाँ विराजित सतियों की स्थिरता का लाभ संघ को मिला व नियमित आराधना का क्रम चल रहा है।
धर्म चक्र 34 दिन की तपस्या
चातुर्मास में एक माह से ज्यादा समय तपस्वी अपना समय धर्मचक्र की आराधना में व्यतीत करेंगें। धर्मचक्र के अंतर्गत तपस्वी 1 उपवास फिर पारणा, 2 उपवास फिर पारणा इस तरह क्रमशः 3-4-5 तक चढेंगें फिर इसी तरह 5-4-3-2-1 उपवास कर पारणा करेंगें। यह तपस्या पूरे 34 दिन चलेगी जिसमें 25 दिन उपवास के व 9 दिन पारणें के आयेंगें। तपस्वी सम्पूर्ण अवधि उपवास के दिन केवल राख का पानी ही उपयोग करेंगें वही रात्रि चौविहार, सचीत वस्तुओं त्याग व ब्रम्हश्चर्य का पालन करेंगें। तप अवधि में प्रतिदिन 12 लोगस्स (तीर्थंकर नाम कीर्तन) ध्यान, 12 वंदना व 21 माला लोगस्स की जपेंगें। इस तरह यह तपस्या पूर्व जनित करोड़ो कर्मो को खपाने का माध्यम बनती है। जैन धर्म अनुसार तप द्वारा कर्म निर्जरा होती है जिससे व्यक्ति एक दिन समस्त कर्मों से मुक्त होकर भव बंधन से छूट जाता है व शाश्वत सुख मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
चातुर्मासिक पक्खी पर 120 उपवास की आराधना
गुरु पूर्णिमा चातुर्मास कल्प पर थांदला में पक्खी मण्डल द्वारा सामूहिक उपवास तप की आराधना का भी आयोजन हुआ। आयोजन में करीना 120 से अधिक तपस्वी ने उपवास तप की आराधना की वही 20 से अधिक श्रावक-श्राविकाओं ने पौषध - संवर तप की आराधना की। धर्मचक्र के तपस्वियों के बेले तप की आराधना हुई। इस तरह करीब 200 से अधिक तपस्वियों के सामूहिक पारणें स्थानीय महावीर भवन पर आयोजित किये गए जिसका सम्पूर्ण लाभ संघ के परामर्शदाता दिलीप कनकमलजी शाहजी, अंकुर - अंजल शाहजी परिवार ने लिया।