पेटलावद से हरिश राठौड़ /मनोज पुरोहित की रिपोर्ट
पेटलावद। नप की चुनावी सरगर्मियां मतदान से 04 दिन पहले बड्ड गयी है और चुनावी पारा आसमान छू रहा है।
निर्दलिय कर रहे नुकसान टिकिटधारी को...
नगर कि यदि बात करे तो यहां सबसे बड़े और आमजन के पसन्दीदा राजनीतिक और सत्ताधारी दल भाजपा को किसी दूसरी पार्टी की बजाय उसके ही विचारधारा के निर्दलिय नुकसान पहुचा रहे है।
आकड़ो के लिहाज से भाजपा ने 15 वार्डो में 15 प्रत्याशियों को फूल का निशान दिया था लेकिन 15 सितम्बर को वार्ड 06 के लिये हुए नाटकीय घटनाक्रम के बाद भाजपा 14 वार्डो में ही फूल पर वोट मांग रही है। वही कांग्रेस ने 15 की जगह 14 वार्ड में ही अधिकृत प्रत्याशी खड़े किये वार्ड 02 में कांग्रेस को प्रत्याशी भी नही मिल पाया।
पिछली बार से हो रहा सीटों का नुकसान...
भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों को कांग्रेस की जगह निर्दलिय से खतरा हो गया है कई वार्डो में या तो निर्दलिय भाजपा को हराने की स्थिति में या निर्दलिय के चलते तीसरा व्यक्ति (कांग्रेस)चुनाव जित सकते है दोनो ही स्थितियो में नुकसान भाजपा का ही है। जिससे पिछले 12(एक निर्दलिय सहित) वार्डो से नीचे उतरकर भाजपा 04 से 06 सीटो पर आने की स्थिति बन रही है। मतलब पिछली परिषद के मुकाबले सीटो का सीधा नुकसान भाजपा को होता दिख रहा है।
फूक फूक कर रख रही कदम
मर्यादित ओर कैडर बेस पोलोटिक्स के लिये मशहूर भाजपा नगर में बागियों की खिलाफत को कंट्रोल नही कर पा रही है । यह आमजन में चर्चा जोरों पर है । सीएम के दौरे के समय ये चर्चा जोरों पर थी कि बागियों पर कार्यवाही जल्द होगी।
दूरदृष्टि से भाजपा बना रही समीकरण....
लेकिन मतदान को सिर्फ 04 दिन बचे है और अभी तक भाजपा का कोई एक्शन बागियों पर नही लेना इस बात का संकेत है कि जितने वाले उम्मीदवारों पर भाजपा अपना सियासी दाव लगा चुकी है ये निर्विवाद है कि बागी भी भाजपा के ही है और चुनाव बाद बागियों को लेकर कांग्रेस या अन्य कोई बड़ा दाव न खेल सके इसके लिये भाजपा अब तक निर्दलीयों पर कार्यवाही से बच रहीं है क्योंकि भाजपा का मुख्य उद्देश्य नप में भाजपा का बोर्ड बनाना है और इस उद्देश्य कि पूर्ति के लिये बागियों की जरूरत पड़ेगी । ओर इसलिये यदि आज बागियों को निष्काषन किया जाता है तो बोर्ड बनाने में दिक्कत आएगी । कुल मिलाकर कांग्रेस या अन्य को नप का बोर्ड बनाने से रोकने की दूरदृष्टि के चलते नगर में भाजपा बागियों पर कार्यवाही से बच रही है।
बागियों को गले लगाने की पुरानी परपंरा....
पिछले 15 वर्षों पर यदि नजर घुमाई जाए तो नप के चुनाव में हमेशा टिकिट से वंचित बागी प्रत्याशीयो ने भाजपा का विरोध कर चुनाव लड़ा ओर जीता बादमे भाजपा ने इनको सिर का ताज बनाया । ओर पिछले वर्षों की इसी रीति नीति और सोच के चलते बागी जानते है कि यदि वे जीत गए तो भाजपा उन्हें गले लगा लेगी । तो कैडर बेस पार्टी का उद्देश्य सिर्फ सीट ओर तख्त बन जाये तो वहा नियम और आदर्श गोंन हो जाते है।
बागियों को मिल रही ऊर्जा....
हालाकि नगर में अधिकांश नेता भी दबे छुपे तरीके से फूल की जगह निर्दलिय का समर्थन, प्रचार, अंदरूनी रुप से करते दिख रहे है या यूं कहें कि इन बागियों को खड़े रहने की हिम्म्मत ओर ऊर्जा इन्ही नेताओं से मिल रही है जिसके चलते कमल के फूल कम खिलने की नोबत आगयी है। ओर अधिकृत प्रत्यासी बीच भवर में खड़े है।
सहयोगीयो पर तो कसी जा सकती है नकेल.....
यदि भाजपा भले ही बागियों पर कार्यवाही नही करे पर इनको अंदरूनी मजबूती देने वालो पर यदि नकेल कसती है तो खिलने वाला कमल की संख्या आने वाले 04 दिनों की मेहनत के बाद बड़ सकती है।
हालांकि अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव भी सर पर है और भाजपा कोई रिस्क लेने के मूड में नही इसलिये भाजपा पूरे मामले में फूक फूक कर कदम रख रही है।