News@हरिश राठौड़
पेटलावद। बहती है ये प्रेम की गंगा बहने दो, क्यों करते हो देश में दंगा रहने दो,लाल हरे रंगो में हमको मत बाटो, छत के ऊपर एक तिरंगा रहने दो।
उत्तरप्रदेश के रामपुर के मशहूर इंटरनेशनल कव्वाल जावेद हुसैन खान ने जब ये शेर पढ़ा तो आयोजन स्थल तालियों से गूंज उठा।
जी हां, खुशनुमे सुहाने मौसम के साथ, इत्र की खुश्बु की महक के बीच सूर और ताल की से संगत मिलाती कव्वाल पार्टी, सूफी संतो और हर कलाम पर कव्वाल पर नोटो की बारिश करते बाहर से आए ख्वाजा के दीवानो और नबी से मोहब्बत करने वाले।
यह नजारा था हजरत दातार ओढ़ी वाले दादा रेहमतुल्लाह अलैह दादाजी के 21वें सालाना उर्स मुबारक का।
शुक्रवार की रात हजरत दातार ओढ़ी वाले दादा रेहमतुल्लाह अलैह के 21वें सालाना उर्स मुबारक पर कव्वाली का आयोजन रखा गया। रात में सरकार के दरबार में महफिल ए सिमां अपने शबाब पर रही। जिसमें जावेद खान ने रात 10 बजे मंच संभाला, उन्होंने ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि हर आशिके रसूल झूम उठे। उन्होंने कुल से शुरुवात करते हुए नबी, ख्वाजा जी, मोला हुसैन के नाम कलाम पेश किए। जिस पर बाहर से आए मेहमानों ने खूब दाद दी। बारिश की वजह से बीच में जरूर कव्वाली का प्रोग्राम बाधित हुआ, लेकिन फिर रात करीब 1 बजे के बाद गजलों का दौर दरगाह परिसर में शुरू हुआ। जिसमें उन्होंने भरपूर गलज पेश कर श्रोताओं का मनोरंजन किया। कार्यक्रम का संचालन रियाज भाई काजी झाबुआ वालो ने किया।
*जगह जगह से आए श्रोता:*
कव्वाली की महफिल सुनने के लिए झाबुआ, राणापुर, भाबरा, थांदला, रतलाम, काछीबड़ोदा, धार, बदनावर, बड़नगर, कुशलगढ़, मेघनगर, सरदारपुर सहित कई जगहों से श्रद्धालु आए। महफिल ए सिमां में कई सूफी संत भी शामिल हुए जिन्होंने कव्वाली प्रोग्राम की रौनक बड़ाई।
सदर शाकिर शेख और अमजद लाला ने सभी नगरजनों ओर श्रद्धालुओ का सफल आयोजन के लिए दिल से आभार व्यक्त किया।
*मुझे गमजदा देखकर वो ये बोले हमारा है तू बेसहारा नही:*
हजरत ओढ़ी वाले दातार रेअ के सालाना उर्स का समापन शनिवार को महफिल-ए-रंग के साथ हो गया। आस्ताने औलिया के बाहर स्थित महफिल खाने में कुल की महफिल हुई। सुबह महफिल खाने में 10 बजे रंग की महफिल शुरू हुई, इसमें जावरा से आए यूसुफ फारुख ने कई कलाम पढ़े। कार्यक्रम में जब कव्वाली गाई जा रही थी, तो उनके एक-एक कलाम पर नजराना देने के लिए लोग जा रहे थे। उन्होंने मुझे गमजदा देखकर वो ये बोले हमारा है तू बेसहारा नही है', छाप तिलक सब छीन ली रे, मोसे नैना मिलायके, कलाम पेश किया तो उपस्थित लोगों की आंखों से पानी बह निकला। दोपहर 3 बजे हजरत अमीर खुसरो द्वारा लिखित 'आज रंग है री मां रंग है..से कुल की महफिल का समापन हुआ। उर्स के दौरान 'आज रंग है री सखी ओढ़ी वाले बाबा के घर आज रंग है, आओ चिश्ती संग खेलें होली दातार के संग' जैसे कलाम कव्वाल ने पेश की तो पूरा शामियाना इत्र व गुलाब जल की खुशबू से महक उठा। आस्ताने में कुल की रस्म हुई जिसमें फातेहा पढ़ी जाकर मुल्क में अमन चैन ओर खुशहाली की दुआ की गई।
*महफिल सजी केसरिया साफे से:*
रंग की इस महफिल में हर किसी के सिर पर केसरिया साफे नजर आए रहे थे। इसी रंगारंग महफिल में जावेद चिश्ती ने अपनी कव्वाली पेश की,जिसे समाजजनों ने खूब सराहा। अंत में 'मेला बिछड़ो ही जाए, दातार तोरा मेला बिछड़ो ही जाए' पढकर रंग की महफिल का समापन हुआ।
*भंडारे का आयोजन:*
सर्व समाज उर्स कमेटी के कार्यकर्ताओं ने बताया कि कमेटी की ओर से लंगर-ए-आम शुद्ध सात्विक भंडारे का आयोजन किया गया। लंगर में श्रद्धालुओं ने बड़-चढकर हिस्सा लिया। उर्स कमेटी ने पुलिस प्रशासन से लेकर हर किसी को इस धार्मिक आयोजन को सफल बनाने के लिए आभार माना है।